स्व राम गुलाम द्विवेदी जी ऐसे लोकतंत्र रक्षक सेनानी थे जिन्होंने इमरजेंसी के दौरान 19 महीने तक कठोर कारावास 

स्व राम गुलाम द्विवेदी जी ऐसे लोकतंत्र रक्षक सेनानी थे जिन्होंने इमरजेंसी के दौरान 19 महीने तक कठोर कारावास 

सुलतानपुर। देश में 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में आपातकाल घोषित हुआ था। तत्कालीन राष्ट्रपति फ़ख़रुद्दीन अली अहमद ने तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी के कहने पर भारतीय संविधान की अनुच्छेद 352 के अधीन आपातकाल की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। ऐसे में पूरे देश में लोकतंत्र की रक्षा के लिए आवाज उठने लगी। तानाशाही सरकार ऐसे सभी सेनानियों को जबरन पकड़ कर जेल में डाल देती थी।

इस घटना को याद करते हुए बुनियादी भाजपा नेता महिमा शंकर द्विवेदी ने सभी लोकतंत्र रक्षक सेनानियों को नमन करते हुए बताया कि मेरे पूज्य पिता लोकतंत्र सेनानी स्व राम गुलाम जी द्विवेदी जी पेशे से शिक्षक थे, चाहते तो बड़े आराम से जीवकोपार्जन करते पर देश की इन विषम परिस्थितियों में वे देश के संविधान को बचाने निकल पड़े और 19 महीने जेल में रहे । छूटने के बाद संघ के कार्यों का जीवन पर्यन्त कार्य देखते रहे। स्व राम गुलाम द्विवेदी जी वनवासी कल्याण आश्रम के प्रदेश के साथ साथ नेपाल तक के प्रभारी रहे । सीताकुंड स्थित वनवासी आश्रम आप ही की देन है जिसमें कितने ही वनवासी बच्चे रह के शिक्षा दीक्षा ले रहे है । इन्होंने इतना साधारण जीवन जिया के हमें कभी अहसास ही नहीं हुआ के आपका व्यक्तित्व कितना बड़ा है, वो तो आप के परलोक गमन पर प्रशासन के समस्त उच्चाधिकारियों के मौजूदगी में गार्ड आफ आनर मिलना और मोहन भागवत जी तक का शोक सभा करना आपके संघर्षों की गाथा कहता है। इस अवसर पर महिमा शंकर द्विवेदी ने कहा कि उन्हें गर्व है कि‌ एक लोक तंत्र‌ रक्षक सेनानी की संतान हैं कि जिन्होंने लोक तंत्र‌ की रक्षा के कठिन यातनाएं झेली थी।